नक्सलियों ने कोबरा कमांडो के हाथ-पैर पर रस्सी और आंखों पर पट्टी बांधकर बदलते रहे ठिकाना

नक्सलियों ने कोबरा कमांडो के हाथ-पैर पर रस्सी और आंखों पर पट्टी बांधकर बदलते रहे ठिकाना

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों के कब्जे में छह दिन रहे सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास का कहना है कि वह उन दिनों की यादों को भूलना चाहते हैं। इन छह दिनों में नक्सलियों ने कहीं भी एक जगह पर उन्हें नहीं रखा। लगातार ठिकाना बदलते रहे। हाथ-पैर पर रस्सी और आंखों पर पट्टी बांध दी थी। यह जरूर था कि इतना होने के बाद भी उन्होंने यातनाएं नहीं दीं। ज्ञात हो कि नक्सलियों से मुठभेड़ में तीन अप्रैल को राकेश्वर लापता हो गए थे। बाद में पता चला था कि नक्सलियों ने उन्हें बंधक बना लिया है। इस मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हो गए थे।

कैद से रिहा होने के बाद जम्मू पहुंचे राकेश्वर ने बातचीत में कहा कि आठ अप्रैल को रिहाई के वक्त ही उनके हाथ-पैर छह दिन बाद खोले गए और आंखों से पट्टी हटाई गई। छह दिन तक केवल खाना खाने के वक्त हाथ थोड़े समय के लिए खोले जाते थे। आंखों से पट्टी तो कभी हटाई ही नहीं गई। इस वजह से उन्हें कुछ भी अहसास नहीं है कि उन्हें कहां-कहां ले जाया गया।

कहा, कठिन और मुश्किल परिस्थितियों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्हें नक्सली छोड़ देंगे क्योंकि पहले कभी भी इस तरह का कोई मामला सुनने को नहीं मिला था। नक्सलियों की कैद से छूटने का वक्त उनके जीवन का बड़ी राहत का क्षण था। 

बुरा सपना था…भूलना चाहते हैं
राकेश्वर का कहना है कि वह बुरा सपना था। वह इसे भूलना चाहते हैं। वह नहीं चाहते कि उन दिनों की याद आए। कहा कि ऑपरेशन में शहीद हुए जवानों की शहादत को याद कर दुख होता है। उनके परिवार वालों का ख्याल आता है। उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। सभी जवान हीरो थे। 

मां की प्रार्थना व देशवासियों की दुआओं से मिला दूसरा जीवन
कोबरा कमांडो का कहना है कि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी, लेकिन वह अपनी रिहाई के प्रति पूरी तरह आश्वस्त भी नहीं थे। मां कुंती देवी की प्रार्थना और देशवासियों की दुआओं के चलते वे जिंदा लौट पाए हैं। मां की प्रार्थना से ही वे दुश्मन के कब्जे में रहने के बाद भी सुरक्षित रहे। देशवासियों की दुआओं ने भी असंभव लग रही उनकी रिहाई को संभव कर दिखाया।

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